Wednesday 2 May 2018

एफसीआरए,2010 विदेशी योगदान के गलत इस्‍तेमाल का निरीक्षण करेगा

 विदेशी अंशदायी (विनियमन) अधिनियम, 2010 एक मई, 2011 से प्रभाव में आया है। गृह मंत्रालय ने इस संदर्भ में 29 अप्रैल,2011 को आवश्‍यक राजपत्र अधिसूचना जारी कर दी है। अत: पिछला विदेशी अंशदायी (विनियमन) अधिनियम, 1976 को निरस्‍त कर दिया गया है।
     गृह मंत्रालय ने 29 अप्रैल,2011 को एफसीआरए,2010 की धारा 48 के अंतर्गत विदेशी अंशदायी(विनियमन) नियमों को अधसूचित करने वाली राजपत्र अधिसूचना भी जारी की थी । एफसीआर नियम, 2011, एफसीआरए,, 2010 के साथ ही प्रभाव में आया है।
    हालांकि रद्द किए गए एफसीआरए,1976 के प्रावधानों को कायम रखा गया है तथा एफसीआरए ,2010 में सुधार किए गए हैं। संघों द्वारा प्राप्‍त विदेशी योगदान के गलत इस्‍तेमाल को रोकने के लिए एफसीआरए ,2010 में और सख्‍त प्रावधानों को जोड़ा गया है।

नए प्रावधान
    एफसीआरए,2010 में कई नए प्रावधानों को जोड़ा गया है। एक व्‍यक्ति इस अधिनियम के तहत प्राप्‍त विदेशी योगदान को दूसरे व्‍यक्ति को तब तक नहीं दे सकता, जब तक कि वह व्‍यक्ति भी केंद्र सरकार के द्वारा निर्मित नियमों के अनुसार विदेशी योगदान को प्राप्‍त करने के लिए अधिकृत नहीं है।  
     नए प्रावधान में , विदेशी योगदान को जिस उद्देश्‍य के लिए प्राप्‍त किया गया है, उसके लिए उपयोग किया जाना चाहिए और ऐसे योगदान को प्रशासनिक खर्च के लिए 50 प्रतिशत तक इस्‍तेमाल किया जा सकता है। प्रशासनिक खर्च यदि योगदान के 50 प्रतिशत से अधिक हो रहा हो तो ऐसे में इसे केंद्र सरकार की पूर्व स्‍वीकृति के साथ चुकाना होगा। इस अधनियम के प्रावधान का उल्‍लंघन करने पर पंजीकरण को निलंबित के साथ-साथ निरस्‍त कर देना भी इस अधिनियम का नया प्रावधान है।
    अन्‍य नए प्रावधान में जिन व्‍यक्तियों के प्रमाण पत्र को रद्द कर दिया गया है उनके विदेशी योगदान और संपत्ति का प्रबंधन करना।

पंजीकरण आसान
     पंजीकरण प्राप्‍त करने के लिए आवेदन को जमा करने या विदेशी योगदान प्राप्‍त करने के लिए पूर्व अनुमति पाने का तौर तरीका, नियम और आवेदन भरने के प्रपत्रों में विस्‍तृत रूप से दिया गया है। पंजीकरण या पूर्व अनुमति पाने के लिए ऑन-लाइन आवेदन करना होगा तथा उसके बाद ऑन-लाइन आवेदन की विधिवत हस्‍ताक्षर की गई हार्ड कॉपी को अपेक्षित दस्‍तावेज़ों के साथ संलग्‍न करके ऑन-लाइन जमा करने के 30 दिनों के भीतर दे देना होगा। ऐसा न करने पर व्‍यक्ति के आवेदन को नि‍रस्‍त किया जा सकता है।
    किसी व्‍यक्ति के आवेदन को नि‍रस्‍त  कर दिया गया है तो वह पिछले आवेदन को समाप्‍त की गई तिथि के केवल छह महीने के बाद ही दोबारा ऑन-लाइन आवेदन कर सकता है ।       समान परियोजना के लिए पूर्व अनुमति या पंजीकरण जमा करने के बाद किसी भी व्‍यक्ति को छह महीने की अवधि के भीतर पंजीकरण या पूर्व अनुमति लेने के लिए दूसरा आवेदन करने की अनुमति नहीं होगी।
     पंजीकरण या पूर्व अनुमति प्राप्‍त करने के लिए शुल्‍क क्रमश: 2000/- रूपए और 1000/- रूपए होगा।
पंजीकरण पांच साल तक वैध होगी                                रद्द किए गए अधिनियम के अंतर्गत विदेशी योगदान को स्‍वीकार करने के लिए संघ आदि को दिए गए पंजीकरण प्रमाण पत्र की वैधता की कोई समय सीमा नहीं थी। एफसीआरए, 2010 में दिए गया प्रमाण पत्र पांच साल तक वैध होगा तथा पूर्व अनुमति, विशेष कार्य या विदेशी योगदान जिसके लिए अनुमति दी गई है, उस विशेष राशि के लिए वैध होगा। आगे हर व्‍यक्ति जिसे कि प्रमाण पत्र दिया गया है, उसे इस प्रमाण पत्र की समाप्ति होने की अवधि से पहले, छह महीने के भीतर नवीकृत करा लेना चाहिए।
    किसी संघ को केंद्र सरकार की धारा 6 या रद्द एफसीआरए, 1976 के अंतर्गत पूर्व अनुमति या पंजीकृत किया गया है, उसकी पूर्व अनुमति और पंजीकरण को एफसीआरए, 2010 के अंतर्गत प्रदान किया जा सकता है और ऐसा पंजीकरण नए अधिनियम के प्रभाव में आने की तिथि से पांच साल की अवधि के लिए वैध होगा।
     एक व्‍यक्ति जारी बहु-वर्षीय परियोजना को कार्यान्वित कर रहा है तो उसे पंजीकरण के प्रमाण पत्र की समाप्ति की तिथि से 12 महीने पहले ही नवीकरण के लिए आवेदन कर देना चाहिए।
खातों के लिए नियम                                             विदेशी योगदान के अलावा एफसी खाते में कोई निधि नहीं होनी चाहिए। संघ आदि को एफसी खाते को अलग से देखना होगा। हर बैंक को प्राप्‍त विदेशी राशि, स्‍त्रोतों, तरीकों और अन्‍य विवरण के बारे में ऐसे प्राधिकरणों को रिपोर्ट देनी चाहिए।
     हर व्‍यक्ति जिसे पंजीकरण या पूर्व अनुमति प्रदान की गई है उसे प्राप्‍त विदेशी योगदान और उसके इस्‍तेमाल के लिए अलग से खाते और रिकॉर्ड बनाने चाहिए।
     यदि पंजीकृत व्‍यक्ति या जिस व्‍यक्ति को पूर्व अनुमति मिली है, वह कानून के अनुसार सही सूचना देने में असफल होता है तो उसके खातों का निरीक्षण करने का प्रावधान बनाया गया है।
झूठी सूचना के लिए दंड
      नए प्रावधान के अनुसार, अदालत यदि किसी व्‍यक्ति को जानबूझकर गलत सूचना देने और चालाकी से पूर्व अनुमति लेने , तथ्‍यों को छिपाने या गलत ढंग से पेश करने का दोषी मानती है तो उसे जेल हो सकती जिसे कि छह महीने के लिए बढ़ाया जा सकता है या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
     एक नए प्रावधान को जोड़ा गया है जिसमें किसी व्‍यक्ति की संपत्ति निष्क्रिय हो जाने पर उसे केंद्र सरकार द्वारा उल्‍लेखित तरीके से खत्‍म किया जा सकता है।     यदि कोई व्‍यक्ति अधिनियम के प्रावधानों को तोड़ता है तो उसे जेल हो सकती है जिसे पांच साल तक के लिए बढ़ाया जा सकता है या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
राजनैतिक प्रकृति के संगठन                                      एक संगठन के राजनैतिक प्रकृति का घोषित करने, राजनीतिक पार्टी का न होने के लिए दिशा निर्देशों को एफसीआरए, 2010 में निर्धारित किया गया है।
     कोई राजनैतिक प्रकृति के संगठन और कोई संघ या कंपनी ऑडियो या ऑडियो विज़ुअल खबर या सामयिकी कार्यक्रमों को प्रसारित करता है तो उसे विदेशी योगदान मिलना वर्जित है।

एक करोड़ से अधिक योगदान की सूचना सार्वजनिक की जाए  
     यदि कोई व्‍यक्ति जिसे पंजीकरण या पूर्व अनुमति का प्रमाण पत्र प्रदान किया गया है उसे यदि एक वित्‍तीय वर्ष में एक करोड़ से अधिक या उसके समकक्ष विदेशी योगदान प्राप्‍त होता है तो उसे izkfIr पर आंकड़ों को दिखाना होगा तथा उस साल के साथ-साथ अगले वर्ष के विदेशी योगदान के इस्‍तेमाल को भी सार्वजनिक करना होगा। इसके अतिरिक्‍त केंद्र सरकार आम जनता के लिए ऐसे व्‍यक्तियों के संक्षि‍प्‍त  आंकड़ों को अपनी बेबसाइट पर प्रदर्शित या अपलोड कर सकती है।

इस्‍तेमाल न की गई राशि को केंद्र सरकार की पूर्व स्‍वीकृति से खर्च किया जा सकता है      अधिनियम के उपयुक्‍त प्रावधानों के तहत पंजीकरण का प्रमाणपत्र यदि निलंबित कर दिया जाता है तो इस्‍तेमाल न की गई राशि के 25 प्रतिशत को केंद्र सरकार की पूर्व स्‍वीकृति से घोषित उद्देश्‍यों और लक्ष्‍यों , जिसके लिए विदेशी योगदान प्राप्‍त की गई थी, के लिए खर्च किया जा सकता है। इस्‍तेमाल नहीं हुए विदेशी योगदान का शेष 75 प्रतिशत इस्‍तेमाल पंजीकरण प्रमाण पत्र के निलंबन का निरसन होने के बाद ही किया जा सकता है।        पंजीकरण प्रमाण पत्र निरस्‍त होने वाले व्‍यक्ति के इस्‍तेमाल न किए गए विदेशी योगदान की राशि केंद्र सरकार द्वारा इस मामले में आगे के दिशा निर्देश जारी होने तक विशिष्‍ट विदेशी योगदान बैंक के खातें में ही पड़ी रहेगी।

बैंक विदेशी योगदान की izkfIr पर रिपोर्ट भेजेंगे
     यदि कोई व्‍यक्ति जिसे कि अधिनियम के तहत पंजीकरण प्रमाण पत्र प्राप्‍त करना या पूर्व अनुमति लेना ज़रूरी है लेकिन उसके भेजे गए धन की izkfIr की तिथि पर प्रमाण पत्र या पूर्व अनुमति प्रदान नहीं की गई है तो बैंक को ऐसे किसी भी लेन देन के बारे में केंद्र सरकार को 30 दिनों के भीतर रिपोर्ट भेजनी होगी। रिपोर्ट में देने वाले का नाम और पता तथा प्राप्‍त करने वाले का पता और नाम,  खाता नम्‍बर, बैंक का नाम और शाखा, विदेशी योगदान की राशि (विदेशी योगदान के साथ-साथ भारतीय रूपए में), izkfIr की तिथि, विदेशी योगदान प्राप्‍त करने का ढंग, (नकद,चैक, इलैक्‍ट्रोनिक स्‍थानांतरण आदि) संबंधी विवरण सम्मिलित होने चाहिए।     बैंक को किसी भी व्‍यक्ति चाहे वो इस अधिनियम के तहत पंजीकृत हो या ना हो के द्वारा एक ही बार या तीस दिनों की अवधि के भीतर एक करोड़ से अधिक या उसके समकक्ष किसी भी विदेशी योगदान के लेन-देन के बारे में भी केंद्र सरकार को तीस दिनों के भीतर उपर्युक्‍त विवरणों के साथ रिपोर्ट भेजनी चाहिए।

प्राप्‍तकर्ता को चार्टिड अकांउटेंट द्वारा प्रमाणित रिपोर्ट हर साल देनी होगी
     हर व्‍यक्ति जो कि इस अधिनियम के तहत विदेशी योगदान प्राप्‍त करता है उसे निर्धारित प्रारूप के अनुसार चार्टर्ड अकांउटेंट द्वारा विधिवत प्रमाणित रिपोर्ट जमा करनी होगी। इसके साथ आय और खर्च का विवरण , izkfIrऔर भुगतान खाता एवं एक अप्रैल से शुरू हुए हर वित्‍तीय वर्ष के लिए पक्‍का-चिट्ठा, वित्‍तीय वर्ष के समापन के 9 महीनों के भीतर गृह मंत्रालय, नई दिल्‍ली को देना जाना चाहिए। निर्धारित प्रपत्र में दिखाए गए रिटर्न में, विशिष्‍ट बैंक खाते में प्राप्‍त विदेशी योगदान और इसके इस्‍तेमाल के लिए अन्‍य बैंक खातों में स्‍थानांतरित निधि की जानकारी भी होनी चाहिए।
       ऐसी हर रिटर्न के साथ बैंक, जहां विशिष्‍ट विदेशी योगदान खाता है, से खाते के व्‍याख्‍यान वाली प्रति भी साथ में होनी चाहिए। यह प्रति बैंक के अधिकारी द्वारा विधिवत रूप से प्रमाणित होनी चाहिए। व्‍यक्ति को इन व्‍याख्‍यानों को 6 साल तक संभाल कर रखना चाहिए। किसी वित्‍तीय वर्ष में कोई विदेशी योगदान न होने पर शून्‍य’ रिपोर्ट दी जानी चाहिए।

जांच एजेंसी की हर चौथे महीने में रिपोर्ट
     इस अधिनियम के तहत जांच कर रहे केंद्रीय जांच ब्‍यूरो या कोई अन्‍य सरकारी जांच एजेंसी को सौंपे गए प्रत्‍येक मामले के बारे में हर चौथे महीने में केंद्र सरकार को उसकी स्थिति से अवगत कराना होगा। इसमें मामले की संख्‍या, पंजीकरण की तिथि, चार्ज शीट दाखिल करने की तिथि, किस कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की गई है, सुनवाई की प्रगति, फैसले की तिथि और हर मामले का निष्‍कर्ष सम्मिलित होगा।       व्‍यक्ति की कोई भी जानकारी या राजनैतिक या अव्‍यवहार्य गतिविधियों की सूचना सचिव, गृह मंत्रालय, नई दिल्‍ली को nsuh gksxh। ऐसी जानकारी या सूचना को पंजीकृत डाक से भेजी tk,xh

किसी अन्‍य संस्‍था को विदेशी योगदान का स्‍थानांतरण              यदि विदेशी योगदान को ऐसे व्‍यक्ति को स्‍थानांतरित करने का प्रस्‍ताव है जिसको पंजीकरण प्रमाण पत्र या पूर्व अनुमति प्रदान नहीं की गई है तो संबंधित व्‍यक्ति केंद्र सरकार से विदेशी योगदान के कुछ अंश को स्‍थानांतरित करने की अनुमति के लिए आवेदन कर सकता है। यह स्‍थानांतरण कुल प्राप्‍त विदेशी सहयोग के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए । आवेदन जिला मजिस्‍ट्रेट द्वारा प्रति हस्‍ताक्षरित होना चाहिए। इस जिला मजिस्‍ट्रेट का न्‍याय अधिकार उस जगह पर होना चाहिए जहां यह स्‍थानांरि‍त निधि का इस्‍तेमाल किया जाना है। जिला मजिस्‍ट्रेट को आवेदन मिलने के 60 दिनों के भीतर इस विषय पर कोई उचित निर्णय देना होगा। देने वाला व्‍यक्‍ति‍तब तक कोई विदेशी सहयोग स्‍थानांतरित नहीं कर सकता जब तक कि केंद्र सरकार इसकी मंज़ूरी न दे दे। कोई व्‍यक्ति यदि विदेशी सहयोग को स्‍थानांतरित करना चाहता है, वह निर्धारित प्रपत्र के अनुसार केंद्र सरकार के पास आवेदन कर सकता है। यदि प्राप्‍तकर्ता ने इस अ‍धि‍नियम के किसी प्रावधान के तहत किसी तरह की शुरूआत नहीं की है तो उस मामले में केंद्र सरकार ,पंजीकरण प्रमाण पत्र या पूर्व अनुमति प्रदान किए गए व्‍यक्ति  के संबंध में स्‍थानांतरण की अनुमति दे सकती है। विदेशी योगदान का कोई भी स्‍थानांतरण निर्धारित रिटर्न में स्‍थानांतरणकर्ता और प्राप्‍तकर्ता द्वारा दर्शाया जाना चाहिए।
विविध मुद्दे
     अव्‍यवहार्य गतिविधियों के बारे में एफसीआरए, 2010 में परिभाषित किया गया है। प्रशासनिक खर्च’ के बारे में स्‍पष्‍ट रूप से परिभाषित किया गया है।
     धारा 21 में चुनाव के लिए प्राप्‍त कि‍ए गए विदेशी सहयोग के बारे में उम्‍मीदवार के रूप में विधिवत नामांकन कराने की तिथि के 45 दिनों के भीतर निर्धारित प्रपत्र के अनुसार बताई जानी चाहिए।(पसूका)

Tuesday 4 April 2017

ईवीएम सच या वीवीपीएटी?

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी 'ईवीएम' आखिर क्यों 'इलेक्शन विवाद मशीन' बनती जा रही है? अब केवल सफाई से बात बनती नहीं दिख रही, क्योंकि ईवीएम के मत सत्यापन पर्ची यानी वोटर वेरीफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) से जुड़ने के बाद जो सच्चाई सामने है, उससे निर्वाचन आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल उठता है। ईवीएम से अगर छेड़छाड़ हुई, तो यह जनता की ताकत से खिलवाड़ है।
'प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणम्' वाले अंदाज में, रही-सही कसर, शुक्रवार 31 मार्च को तब पूरी हो गई, जब मप्र के भिंड में होने वाले उपचुनाव का जायजा लेने पहुंचीं प्रदेश की मुख्य निर्वाचन अधिकारी सलीना सिंह ने 'वीवीपीएटी' की परीक्षा के लिए मीडिया की मौजूदगी में डेमो के लिए दो अलग-अलग बटन दबाए और दोनों ही बार पर्चियां 'कमल' की निकलीं।
लेकिन उससे भी बड़ा सच यह है कि गोवा में 4 फरवरी को हुए विधानसभा चुनाव में सभी जगह 'वीवीपीएटी' का उपयोग किया गया, पर वहां सब कुछ ठीक-ठाक रहा! ऐसे में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर विपक्ष के सवालों का जवाब जरूरी है। अब प्रश्न है कि ईवीएम सच या वीवीपीएटी? जाहिर है, जो दिखता है वो सच है, लेकिन जो नहीं दिखा उसे कैसे सच मानें? सवाल आसानी से सुलझता नहीं दिख रहा, क्योंकि सवाल विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के चुनावों की पारदर्शिता, निष्पक्षता और विश्वास का है। एक और दिलचस्प तथ्य यह भी कि वर्ष 2009 में 'ईवीएम' पर खुद भाजपा की ओर से दिग्गज नेता नेता लालकृष्ण आडवाणी और सुब्रमण्यम स्वामी ने भी कई आरोप लगाए थे।
स्वामी सर्वोच्च अदालत भी गए, जहां 9 अक्टूबर 2013 को 'इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन' में 'वीवीपीएटी' लगाने और हर वोटर को रसीद जारी करना वाली मांग पर सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग को व्यवस्था देते हुए कहा कि 'वीवीपीएटी' स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनावों के लिए अपरिहार्य है तथा भारत निर्वाचन आयोग को इस प्रणाली की सटीकता सुनिश्चित करने के लिए ईवीएम को 'वीवीपीएटी' से जोड़ने के निर्देश दिए।
दरअसल 'वीवीपीएटी' मतपत्र रहित मतदान प्रणाली का इस्तेमाल करते हुए, मतदाताओं को फीडबैक देने का तरीका है। इसका उद्देश्य इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की निष्पक्षता पुष्टि है। ये ऐसा प्रिंटर है जो 'ईवीएम' से जुड़ा होता है। वोट डालते ही एक पावती निकलती है जो मतदाता के देखते ही एक कन्टेनर में चली जाती है। पर्ची पर क्रम संख्या, नाम, उम्मीदवार का चुनाव चिन्ह दर्ज होता है। इससे वोट डालने की पुष्टि होती है और वोटर को चुनौती देने की अनुमति भी मिलती है।
2014 के आम चुनाव में 'ईवीएम' में पावती रसीद लागू करने की योजना चरणबद्ध तरीके से लागू करने के निर्देश दिए थे, ताकि स्वतंत्र एवं निष्पक्ष मतदान सुनिश्चित हो। जिस पर आयोग ने कहा कि सभी 543 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में इस प्रणाली को लागू करने के लिए 14 लाख 'वीवीपीएटी' मशीनों की जरूरत होगी, जिसके लिए समय बहुत कम है। ऐसे में 2019 के आम चुनावों के पहले इन्हें लगा पाना संभव नहीं होगा। इसके लिए 1500 करोड़ रुपयों की भी जरूरत पड़ेगी।
अभी 5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के बाद, चाहे उप्र के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव या मायावती हों, उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, पंजाब को लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हों, सभी ने 'ईवीएम' मशीन पर छेड़छाड़ के आरोप लगाए थे, जबकि अक्टूबर 2010 में सर्वदलीय बैठक में 'ईवीएम' इस्तेमाल के लिए व्यापक सहमति बनाते हुए कई राजनैतिक दलों ने 'वीवीपीएटी' का सुझाव दिया था, तभी से संभावना तलाशी जाने लगीं।
लेकिन जब इसके अनिवार्य इस्तेमाल की तैयारियां क्रमश: अमल में आने लगीं, तभी मप्र में यह सब हो गया। यह संयोग ही कहा जाएगा जो इसी 24 मार्च शुक्रवार को 'ईवीएम' से छेड़छाड़ मामले में एक याचिका पर सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से 4 हफ्तों में जवाब मांगा ही था कि अगले ही शुक्रवार 31 मार्च को मप्र में कैमरों की मौजूदगी में 'वीवीपीएटी' की अलग कहानी कैद हो गई।
अब सवाल यह भी उठेगा, मशीन का आधिकारिक अंतिम उपयोग कहां हुआ था। जाहिर है, इसे कई कानूनी पहलुओं से जोड़ा भी जाएगा। इधर, चुनाव आयोग यह दावा करता रहा है कि 'ईवीएम' मशीनों से तब तक छेड़छाड़ नहीं की जा सकती, जब तक उनकी टेक्निकल, मैकेनिकल और सॉफ्टवेयर डिटेल गुप्त रहें, तो क्या इसकी गोपनीयता भंग हो चुकी है? सवाल बहुत हैं, जिन पर आयोग व राजनीतिक दलों के बीच लंबी माथापच्ची होगी। पर विडंबना यही है कि दिखने वाली मशीन से विवाद उठा है।
'ईवीएम' की पारदर्शिता पर सवाल उठाते हुए जहां जर्मनी ने इसे प्रतिबंधित किया था, वहीं इसी नक्शे कदम पर नीदरलैंड्स ने प्रतिबंधित किया। इटली ने भी नतीजों को आसानी से बदलने का आरोप लगाते हुए इसे चुनाव प्रक्रिया से ही हटा दिया, जबकि आयरलैंड ने संवैधानिक चुनावों के लिए 'खतरा' तक बता दिया। अमेरिका के कैलीफोर्निया सहित दूसरे राज्यों ने भी बिना पेपर ट्रेल के 'ईवीएम' के उपयोग से मना कर दिया। लेकिन हमारे देश में पेपर ट्रेल के डेमों में आई गड़बड़ी को लेकर सबकी निगाहें आयोग, सुप्रीम कोर्ट और राजनीतिक दलों पर है।
आखिर सवाल दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में जनता की ताकत के साथ कथित 'खिलवाड़' का जो है, साथ ही यह देखना अहम होगा कि चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट में मत सत्यापन पर्ची की हकीकत पर अब क्या कहता है।
 डब्लूएचओ ने दुनिया भर में बीमारियों का बड़ा कारक पर्यावरण प्रदूषण को बताया है 

डब्लूएचओ के एक अनुमान के अनुसार, पर्यावरण को स्वस्थ बनाकर विश्व में हर साल 1.3 करोड़ मौतों को रोका जा सकता है। दुनिया भर में 25% बीमारियों के लिए प्रदूषित वातावरण जिम्मेदार है और प्रायः 85% प्रमुख बीमारियों को पर्यावरणीय कारकों से जोड़ा जा सकता है।
हाल ही में अख़बारों की खबरों में डब्ल्यूएचओ का हवाला देते हुए यह सुझाव दिया गया है कि बच्चों के विकास के लिए भारत का पर्यावरण अत्यंत खराब पर्यावरणों में से एक माना गया है।
निराशाजनक पर्यावरण परिदृश्य को देखते हुए पर्यावरण प्रदूषण: महिलाओं और बाल स्वास्थ्य पर प्रभाव समस्या पर मंथन के लिए लखनऊ में पूरे देश के विशेषज्ञ चिकित्सक, तंत्रिका विज्ञानी और स्वास्थ्य वैज्ञानिकों एकत्रित हुए हैं।
नैनो सामग्रियों के संश्लेषण व केरेक्टराइजेशन पर कार्यशाला का आयोजन
चिकित्सा विशेषज्ञों के अतिरिक्त इस कार्यक्रम में, आईआईटी के पर्यावरण वैज्ञानिक, पर्यावरणीय कानून के विशेषज्ञ और गैर सरकारी संगठनों के सदस्य भी प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। यह सर्वविदित है कि विश्व भर में वायु प्रदूषण प्रमुख हत्यारों में से एक है, जिससे अकेले भारत में ही 10 लाख से अधिक मौतें हुई हैं।
पर्यावरण वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं के लिए चिंता का दूसरा प्रमुख कारण मृदा और जल प्रदूषण है। भारत जैसे देश में, जहां विश्व की मानव आबादी का 18% और पशुधन आबादी का 15% विश्व के केवल 2.4% जमीनी क्षेत्र में ही है, मृदा प्रदूषण के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं और यह बड़ी चिंता का विषय है।
मृदा में अवांछित मानव निर्मित सामग्रियों की उपस्थिति, जिनमे कीटनाशक, पेट्रोलियम हाइड्रोकार्बन, पॉलीएरोमेटिक हाइड्रोकार्बन और भारी धातुएं मुख्य हैं, मानव स्वास्थ्य और अन्य जीवन रूपों के लिए गंभीर रूप से हानिकारक हैं।
आवश्यक है कि पर्यावरण में विभिन्न संदूषकों और नए संदूषकों की मात्रा को अधिकतम स्वीकार्य स्तरों के भीतर ही रखा जाए, नियामक मानकों को मजबूत किया जाए और उपचारात्मक कार्यों के लिए रणनीतियां बनाई जाएँ।
यह व्यापक रूप से ज्ञात है कि विश्व में 15 करोड़ से अधिक लोग पीने के पानी के माध्यम से आर्सेनिक से प्रभावित हो रहे हैं। 7 राज्यों के 5 करोड़ भारतीय पीने के पानी के माध्यम से आर्सेनिक द्वारा प्रभावित हो रहे हैं।
हालांकि कोई प्रत्यक्ष प्रमाण स्थापित नहीं किया जा सकता लेकिन भारी धातुओं और कीटनाशकों के सम्मिलित जोखिम प्रतिकूल प्रजनन और बाल स्वास्थ्य परिणामों के लिए उत्तरदायी हो सकते हैं।
पर्यावरण प्रदूषण के कारण सामान्य स्वास्थ्य रोगों के साथ-साथ जीनोटॉक्सिक प्रभाव की अभिव्यक्ति भी दर्ज की गई है। बच्चों में न्यूरोडेवेलपमेंटल विकलांगता की बढ़ती घटनाओं का कारण आर्सेनिक और पाइरिथ्रॉइड के बढ़ते जोखिम से जोड़ा गया है।
हालांकि आनुवांशिक, पर्यावरणीय और पोषण संबंधी कारकों का इन रसायनों की विषाक्तता में काफी योगदान होता है, इनका प्रभाव और तीव्रता विभिन्न कारकों जैसे उम्र, लिंग और एक्स्पोसर के मार्ग पर निर्भर करती है।
इन सभी समस्याओं की पहचान करने, उन्हें उचित तरीके से निपटाने और उन्हें सुलझाने की उपयुक्त रणनीति तैयार करने के लिए एक पैनल चर्चा भी आयोजित की गई।
यह सुझाव दिया गया कि इस क्षेत्र में आज उपलब्ध नवीनतम माइक्रो और नैनो टेक्नोलॉजी टूल्स का इस्तेमाल करते हुए बड़े पैमाने पर बहु केंद्रित अध्ययन करना अति आवश्यक है।
आनुवांशिक अध्ययन को बहु केंद्रित महामारी विज्ञान अध्ययन को साथ रख कर करने चाहिए और और सूक्ष्म विज्ञान और प्रभावित आबादी के बीच एक संबंध स्थापित किया जाना चाहिए। तभी आज के रसायनों के जहरीली स्वभाव के बारे में संदेह समाप्त होंगे और निश्चित प्रमाण मिल पाएगा।
इसके पश्चात ही कानून इस दिशा में सुधारात्मक और निवारक कार्रवाई करने के लिए प्रेरित करेगा और हमारे बच्चों के लिए देश एक बेहतर स्थान होगा।


Wednesday 22 March 2017

राम मंदिर पर क्यों आसान नहीं है समझौता?

रामजन्म भूमि और बाबरी मस्जिद विवाद को आपसी सहमति से अदालत के बाहर सुलझाने की सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के पीछे कई वजहें हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये धर्म और आस्था से जुड़ा मामला है और संवेदनशील मसलों का हल आपसी बातचीत से हो. लेकिन ये इतना आसान नहीं है.
हिन्दू-मुसलमानों के तर्क
पहली बात है कि ये किसी का व्यक्तिगत मुकदमा नहीं है. इसमें मुसलमानों की तरफ से शिया और सुन्नी सब शामिल हैं और हिन्दुओं की तरफ से भी सब संप्रदाय शामिल हैं. तो इसमें कोई एक व्यक्ति या एक संस्था समझौता नहीं कर सकती.
दूसरी बात ये कि हिन्दुओं की तरफ़ से तर्क ये है कि रामजन्म भूमि को देवत्व प्राप्त है, वहां राम मंदिर हो न हो मूर्ती हो न हो वो जगह ही पूज्य है.
वो जगह हट नहीं सकती.
हालांकि कुछ लोग ये तर्क देते हैं कि कुछ मुस्लिम देशों में निर्माण कार्य के लिए मस्जिदें हटाई गईं हैं और दूसर जगह ले जाई गई हैं.
वहीं हिन्दुस्तान के मुसलमानों का कहना है कि मस्जिद जहां एक बार बन गई तो वो क़यामत तक रहेगी, वो अल्लाह की संपत्ति है, वो किसी को दे नहीं सकते . इसलिए मुस्लिम समुदाय की तरफ से ये कहा जा रहा है कि अगर इस मामले में सुप्रीम कोर्ट फ़ैसला कर दे तो हमें कोई ऐतराज़ नहीं हैं.

पहले भी हो चुकी हैं समझौते की कोशिशें
इस मामले में समझौते की कई मुश्किलें हैं क्योंकि पहले भी इसकी कोशिशें हुई हैं, दो बार प्रधानमंत्री स्तर पर प्रयास हुए.
इसके अलावा विश्व हिन्दू परिषद और अली मियां जो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के रहनुमा थे उनके बीच में कोशिश हुई हैं. लेकिन इस मसले में बीच का रास्ते नहीं निकल पाया तो समझौता नहीं हुआ.

अदालत क्यों नहीं कर रही फ़ैसला
अब सवाल ये है कि अदालत इस मसले का फैसला क्यों नहीं कर पा रही है?
दरअसल अदालत के लिए फैसले में सबसे बड़ी दिक्कत है मामले की सुनवाई करना. सुप्रीम कोर्ट में जजों की संख्या कम है. ये संभव नहीं है हाई कोर्ट की तरह तीन जजों की एक बेंच सुप्रीम कोर्ट में भी मामले की सुनवाई करे.
हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान कई टन सबूत और काग़ज़ात पेश हुए. कोई हिन्दी में है, कोई उर्दू में है कोई फ़ारसी में है. इन काग़जों को सुप्रीम कोर्ट में पेश करने के लिए ज़रूरी है कि इनका अंग्रेज़ी में अनुवाद किया जाए. अभी तक सारे काग़ज़ात ही सुप्रीम कोर्ट में पेश नहीं हो पाए हैं और सबका अनुवाद का काम पूरा नहीं हुआ है.

सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में दूसरी समस्या ये भी है कि मुकदमें के पक्षकार बहुत हैं. ऐसे में सुनवाई में कई हफ़्तों का समय लगेगा.
अगर रोज़ाना सुनवाई करें तो कई बार जज रिटायर हो जाते हैं और नए जज आ जाते हैं. तो सुनवाई पूरी नहीं हो पाएगी. इसीलिए चीफ जस्टिस ने कोर्ट ने बाहर समझौता करने की सलाह दी है. ये भी हो सकता है कि चीफ जस्टिस के दिमाग़ में ये बात रही हो कि अगर कोर्ट कोई फ़ैसला कर भी दे तो समाज शायद उसे आसानी से स्वीकार ना करे.
राम जन्मभूमि का मामला पहले एक स्थानीय विवाद था और स्थानीय अदालत में मुक़दमा चल रहा था. लेकिन जब विश्व हिन्दू परिषद इसमें कूदी तो उसके बाद बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन हुआ और ये विश्व हिन्दू परिषद , भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के एक हिन्दू राष्ट्र के सपने का हिस्सा हो गया.
ऐसे में मुस्लमानों को ये भी लगता है कि ये एक मस्जिद का मसला नहीं है, अगर हम सरेंडर कर दें तो कहीं ऐसा ना हो कि इसके आड़ में उनके धर्म और संस्कृति को ख़तरा हो जाए.
(ये लेखक के निजी विचार हैं)

Friday 19 August 2016

IPO क्या है और इसमें कैसे करें निवेश ?


शेयर बाजार और निवेश से जुड़े तमाम ऐसे पहलू हैं जिनसे ज्यादातर लोग अनजान हैं। अधिकतर लोग सामान्य बैंकिंग और बीमा के बारे में अच्छी जानकारी रखते हैं लेकिन निवेश के संबंध में ज्यादा जानकारी नहीं होती है। मसलन शेयर बाजार, म्यूचुअल फंड, बान्ड्स, आईपीओ आदि ऐसे शब्द हैं जिनके बारे में हम सुनते जरूर हैं लेकिन ज्यादा जानकारी नहीं रखते हैं।
इन्ही में से एक है टर्म है आईपीओ। क्या है आईपीओ, ये कैसे काम करता है, इसमें निवेश की क्या संभावनाए हैं, ऐसे सभी सवाल जो आपके मन में आईपीओ को लेकर हैं उसका यहां समाधान होगा और आईपीओ के बारे में आसानी से समझेंगे भी।

क्या है IPO ?
जब एक कंपनी अपने समान्य स्टॉक या शेयर को पहली बार जनता के लिए जारी करता है तो उसे आईपीओ, इनीशियल पब्लिक ऑफरिंग (सार्वजनिक प्रस्ताव) कहते हैं। लिमिटेड कंपनियों द्वारा ये आईपीओ इसलिए जारी किया जाता है जिससे वह शेयर बाजार में सूचीबद्ध हो सके। शेयर बाजार में सूचीबद्ध होने के बाद कंपनी के शेयरों की खरीद शेयर बाजार में हो सकेगी।

IPO लाने का कारण
जब किसी कंपनी को अतिरिक्त पूंजी की आवश्यकता होती है तो वह आईपीओ जारी करती है। ये आईपीओ कंपनी उस वक्त भी जारी कर सकती है जब उसके पास धन की कमी हो वह बाजार से कर्ज लेने के बजाय आईपीओ से पैसा जुटाना ज्यादा बेहतर समझती है। यह किसी भी कंपनी की विस्तार योजना होती है। शेयर बाजार में सूचीबद्ध होने के बाद कंपनी अपने शेयरों को अन्य योजनाओं में लगा सकती है।

IPO पर सेबी की राय
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड यानि SEBI (Securities and Exchange Board of India) आईपीओ लाने वाली कंपनियो के लिए एक सरकारी रेग्युलेटरी है। यह आईपीओ लाने वाली कंपनियो से नियमों का सख्ती से पालन करवाती है। कंपनी हर तरह की जानकारी सेबी को देने के लिए बाध्य होती हैं। यह एक तरह की अनिवार्य शर्त है कि कंपनी अपनी सारी जानकारी सेबी को देगी। यही नहीं, आईपीओ लाने के बाद सेबी कंपनी की जांच भी करवाती है, कि आखिर उसके द्वारा दी गई जानकारी सही है या नहीं।

IPO में निवेश
वैसे तो आईपीओ को एक जोखिम भरा निवेश माना गया है, क्योंकि इसमें कंपनी की शेयरों के प्रगति के संबंध में कोई आंकड़े या जानकारी लोगों के पास नहीं होती है, फिर भी जो व्यक्ति पहली बार शेयर बाजार में निवेश करता है उसके लिए आईपीओ एक बेहतर विकल्प है। अगर आपको शेयर बाजार में भविष्य बनाना है तो आपको आईपीओ की जानकारी होनी ही चाहिए।

IPO से लाभ
आईपीओ में निवेशक तरफ से लगाई गई पूंजी सीधे कंपनी के पास जाती है। हालांकि विनिवेश के मामले में आईपीओ से जो पूंजी मिलती है वह सीधे सरकार के पास जाती है। यदि एक बार इनके शेयरों की ट्रेडिंग की इजाजत मिल जाए तो फिर इन्हें खरीदा और बेचा जा सकता है, हां एक बात जरूर याद रखें शेयर को खरीदने और बेचने से होने वाले लाभ और हानि की जिम्मेदारी निवेशक की होगी।

IPO में कैसे करें निवेश
जब भी आप आईपीओ खरीदने के लिए किसी कंपनी का चयन करते हैं तो सबसे पहले आपका ब्रोकर बेस्ट होना चाहिए। कोशिश करें कि ब्रोकर के साथ मिलकर कंपनी का चयन करें। जो कंपनीं चुन रहे हैं उससे तीन-चार अन्य कंपनियों की भी तुलना करें। कुछ दिन तक इन सभी कंपनियों की प्रगति को देखने के बाद ही निवेश करें। रेटिंग एजेंसी की राय भी बहुत मायने रखती है। कंपनी के आईपीओ की कीमत भी देखें, बाजार में कंपनी के प्रमोटर की साख देखें और दूसरे निवेशकों से कंपनी के आईपीओ को लेकर जानकारी लेते रहें। 

सतर्क रहें
कई बार लोगो के पास आईपीओ कि पूरी जानकारी नही होती है जिस वजह से उन्हें बहुत बार बड़ी हानि हो जाती है. हमेशा सतर्क रहे, कई बार पुराने निवेशक आईपीओ के जरिए अपने शेयर बेचते हैं, और कुछ मामलों में पुराने निवेशकों के शेयर के साथ-साथ नए शेयर भी पेश करते हैं। आईपीओ निवेशक को पुराने निवेशकों के शेयर बेचने के कारणों को जानना चाहिए। अगर आप चाहते हैं कि आप यह कारोबार अच्छे से आगे बढ़े और आपको हमेशा लाभ हो तो इस क्षेत्र में आगे बढ़ने से पहले हर छोटी से छोटी बात पर ध्यान अवश्य दें।